सामग्री पर जाएँ

खुसरू प्रथम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(नौशेरवाँ से अनुप्रेषित)
खुसरू प्रथम एक न्यायप्रिय राजा था। (तेहरान राजदरबार में)

खुसरू प्रथम कवाध या कोवाद प्रथम का प्रिय पुत्र और फारस के ससानीद वंश का सबसे गौरवशाली राजा था। इसे 'नौशेरवाँ आदिल', 'नौशेरवाँ' या 'अनुशेरवाँ' भी कहते हैं। पश्चिमी लेखकों ने इसे 'खोसरोज' अर्थात् खुसरू और अरबों ने 'किसरा' कहा है।

परिचय[संपादित करें]

कवाध की मृत्यु पर सबसे बड़े राजकुमार कावसेस या काऊस ने राज्याधिकार सँभाला, किंतु मंत्री मेबोदीज ने कवाध का वसीयतनामा पेश किया, जो नौशेरवाँ के पक्ष में था। इसपर ५३१ ई. में नौशेरवाँ को राजा बनाया गया।

नौशेरवाँ ने मजदाक के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की। वह अपने एक लाख अनुयाइयों के साथ मौत के घाट उतार दिया गया।

५३३ ई. में नौशेरवाँ ने रोम के सम्राट् जस्टीनियन से शांति संधि की, किंतु वह संधि बहुत दिनों तक नहीं चली। नौशेरवाँ ने ५४० ई. में सीरिया में एंटिओश पर अधिकार कर लिया।

५४० से ५५७ ईसवी तक की अवधि में नौशेरवाँ लाजिका (प्राचीन कोलचीस) पर कब्जा रखने में व्यस्त रहा। कोलचीस को ५२२ ई. में रोम का संरक्षण मिला था। रोम के सत्ताधारियों के व्यवहार से क्षुब्ध होकर लाजिका के राजा ने ५४० ई. में फारस से सहायता माँगी। नौशेरवाँ ने लाजिका में जो हस्तक्षेप किया वह लाभप्रद या सफल नहीं सिद्ध हुआ। अत: ५५७ ई. में रोम और फारस के बीच युद्धविराम हुआ, जिसकी चरम परिणति ५६२ ई. में दोनों देशों के बीच शांति समझौते के रूप में हुई।

कवाध द्वारा दबा दिए गए गोर हूणों पर तुर्कों के खाकान मोकात खाँ की सहायता से नौशेरवाँ ने हूर्णों के ही देश पर हमला किया और उन्हें हराया। इसी प्रकार खजारों पर भी हमला किया गया और उनका संहार हुआ।

५७६ ई. में नौशेरवाँ ने ईसाई धर्मावलंबी अबीसीनियाइयों को मार खदेड़ने के लिए अपना सैनिक दल यमन और अरब में भेजा। अ्व्राहा वंश का अंतिम शासक मसरूक पराजित हुआ और पुराने हिमयारी वंश का एक राजकुमार नौशेरवाँ के वाइसराय के रूप में गद्दी पर बैठाया गया।

वृद्ध नौशेरवाँ ने अपने अंतिम दिनों के एक सैनिक अभियान में तुर्क लुटेरों के दलों को निकाल बाहर किया। ये लुटेर सीमा के उस पार से फारस पर हमले करते थे। इस विजय के बाद ही नौशेरवाँ ने स्वयं फारस को जा घेरा जो दक्षिण-पूर्व में रोमन साम्राज्य का सबसे मजबूत गढ़ था। पाँच महीने तक कठिन प्रतिरोध का सामना करने के बाद नौशेरवाँ ने इसे विजित कर लिया। रोमन लोग समझते थे कि 'महान् नृप' इतना बूढ़ा था कि वह पूर्ववत् अपना शौर्य प्रदर्शन नहीं कर सकेगा किंतु उसकी इस विजय से घबड़ाकर रोमन सम्राट् जस्टिन ने तुरंत युद्धविरा समझौता किया।

इसके बाद ही ५७९ ई. में ४८ वर्ष तक शासन कर चुकने के उपरात नौशेरवाँ की अपने स्टेसिफान (Ctesiphon) राजमहल में मृत्यु हुई। इन ४८ वर्षों में उसने फारस के साम्राज्य को गौरव की चोटी पर पहुँचा दिया।

नौशेरवाँ का चरित्र शक्ति और न्याय का मिश्रित रूप था। उसने क्रमबद्ध मालगुजारी की वसूली रकम के रूप में शुरू की। इसके लिए हर वर्ष फसल का तखमीना लगाया जाता था। उसने स्थायी सेना खड़ी की, जिनके सैनिकों को बँधा वेतन मिलता था। उसने बीज, कृषि उपकरण और पशु देकर बेकार पड़ी भूमि की जोताई कराई और इस प्रकार कृषि को प्रोत्साहन दिया। अधिक जनसंख्या की जरूरत समझकर उसने इस बात पर जोर दिया कि हर स्त्री पुरुष विवाह और श्रम करे। भिक्षा और कामचोरी दोनों ही दंडनीय अपराध थे।

नौशेरवाँ ने संचार संबंध का महत्व समझा, सड़कों पर उसने सुरक्षा की व्यवस्था की और यात्रियों को फारस आने के लिए प्रोत्साहित किया। ऐसे यात्रियों के लिए वह बहुत उदारता और आवभगत दिखाता था।

इतना अधिक था, इस बहुमुखी राजा का ज्ञानप्रेम कि उसने अरस्तू और प्लेटो की कृतियों का अनुवाद फारसी में कराकर अध्ययन किया। गुंदीशपुर में उसने एक विश्वविद्यालय कायम किया, जहाँ चिकित्सा शास्त्र का विशेष रूप से अध्ययन होता था और दर्शन तथा साहित्य की अन्य शाखाओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जाता था। उसके शासनकाल में आर्देशिर के निदेशों को फिर से प्रकाशित और देश का सर्वोच्च नियम घोषित किया गया। इस काल में फारस पूर्व और पश्चिम के बीच विचारों और ज्ञान के आदानप्रदान का केंद्रीय स्थान बन गया था।

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • पर्सीं साइक्स : हिस्ट्री ऑफ परशिया, तृतीय संस्करण, दो खंडों में, लंदन १९५८;
  • एस. जी. डब्ल्यू. बेंजामिन : परशिया, लंदन १८९१;
  • जार्ज रांलिन्सन : सेवेन्थ ग्रेट ओरियंट मनार्की, १८७६;
  • गिबन : डिक्लाइन ऐंड फाल ऑफ द रोमन एंपायर, संपादक ड़ाक्व्र डब्ल्यू. स्मिथ, लंदन, १८५४-५५