सामग्री पर जाएँ

स्वामी दर्शनानन्द

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(स्वामी दर्शनानंद से अनुप्रेषित)

स्वामी दर्शनान्द (१४ जनवरी १८७५ जगराँव, लुधियाना - ११ मई १९१३ हाथरस) आर्यसमाज के एक सन्यासी एवं शिक्षाविद थे जिन्होने अनेक संस्कृत गुरुकुलों की स्थापना की।

स्वामी दर्शनानन्द का जन्म माघ कृष्णा 10 संवत् 1918 विक्रमी को लुधियाना जिले के जगरांव कस्बे में पंडित रामपरताप शर्मा के यहां हुआ। इनका मूल नाम कृपाराम था। इनकी पैतृक जीविका वाणिज्य की थी, किन्तु इसमें मन न लगने के कारण कृपाराम ने शीघ्र ही घर का त्याग कर दिया और काशी चले गये। यहां वे अपने यग के परसिद्ध विद्वान पं. हरिनाथ के शिष्य बन गये। काशी निवास के समय उन्होने अनुभव किया कि इस विद्याक्षेत्र में रहकर अध्ययन में परवृत्त होने वाले छात्रों को शास्त्र ग्रन्थ सुलभ रीति से उपलबध नहीं होते। छात्रों की इस कठिनाई को हल करने के लिए उन्होंने काशी में ‘तिमिरनाशक प्रेस’ की स्थापना की और सहस्रों रूपये व्यय कर संस्कृत गरनथों को स्वल्प मूल्य पर सुलभ बनाया। इस अवधि में उनहोंने निम्न ग्रन्थ प्रकाशित किये-

सामवेद मूल, अष्टाध्यायी, महाभाष्य तथा काशिका वृत्ति, वैशेषिक उपसकार, न्याय दर्शन पर वात्स्यायन भाष्य, सांख्य दर्शन पर विज्ञानभिक्षु का प्रवचन भाष्य और अनिरुद्ध वृत्ति, कात्यायन श्रौतसूत्र, मूल ईशादिदशोपनिषत्संगरह (1889), श्रीमदभगवद्गीता मूल (1945 वि.), अन्नयभट्ट का तर्क-संगरह मूल (1945 वि.), तर्क-संग्रह की न्यायबोधिनी टीका (1945 वि.), शब्द-रूपावली (1945 वि.) मीमांसादर्शन मूल, बादरायण कृत शारीरक सूत्र-शंकरानन्द कृत वृत्ति सहित (1945 वि.)।

अब तक वे आर्यसमाज के सम्पर्क में आकर उसके सिद्धान्तों को अंगीकार कर चुके थे। 1893 से 1901 तक उन्होंने उत्तर भारत के विभिनन प्रान्तों में वैदिक धर्म का प्रचार किया। 1901 में शान्त स्वामी अनुभवानन्द से संन्यास की दीक्षा लेकर पं. कृपाराम ने 'स्वामी दर्शनानन्द' का नाम धारण किया। उनहोंने अपने जीवन काल में पौराणिक, जैन, ईसाई तथा मुसलमान धर्माचार्यों से अनेक शास्तरार्थ किये, अनेक स्थानों पर गुरकलों की स्थापना की तथा अनेक पत्र निकाले। उनके द्वारा परकाशित व सम्पादित पत्रों का विवरण इस परकार है-[1]

  • (१) ‘तिमिरनाशक’ साप्ताहिक काशी से 30 जून 1889 को परकाशित किया।
  • (२) ‘वेद प्रचारक’ मासिक तथा ‘भारत उद्धार’ साप्ताहिक 1894 में जगरांव से,
  • (३) ‘वैदिकधर्म’ साप्ताहिक 1897 में मुरादाबाद से,
  • (४) ‘वैदिक धर्म’ तथा ‘वैदिक मैगजीन’ क्रमशः 1898 तथा 1899 में दिल्ली से,
  • (५) ‘तालिबे इल्म’ उर्दू साप्ताहिक 1900 में आगरा से,
  • (६) ‘गुरुकुल समाचार’ सिकन्दराबाद से,
  • (७) ‘आर्य सिद्धान्त’ मासिक तथा साप्ताहिक उर्दू ‘मबाहिसा’ 1903 में बदायूं से,
  • (८) ‘ऋषि दयानन्द’ मासिक 1908 में हरिज्ञान मन्दिर लाहौर से,
  • (९) ‘वैदिक फिलासफी’ उर्दू मासिक, गुरकल रावलपिण्डी (चोहा भकता) से 1909 में।

इस प्रकार लगभग एक दर्जन पत्र सवामी दर्शनानऩद ने निकाले। उनहोंने इस बात की तनिक भी चिन्ता नहीं की कि ये पत्र अल्पजीवी होते हैं य दीर्घजीवी। गुरुकुलों की स्थापना करने का भी स्वामी दर्शनानन्द को व्यसन ही था। उनहोंने सिकन्दराबाद (1898), बदायूं (1903), बिरालसी (जिला मुजफ्फरनगर) 1905, ज्वालापुर (1907) तथा रावलपिण्डी आदि स्थानों में ये गुरुकुल स्थापित किये।

स्वामी जी ने हैदराबाद आन्दोलन में भाग लिया। निज़ाम की जेलों में आटे में रेत-बजरी मिलकर कैदियों को भोजन दिया जाता था, जिससे स्वामी जी रोगी बन गए। आप उच्च रक्तचाप से इसी कारण पीड़ित रहे। हिंदी आन्दोलन के समय स्वामी जी का कुशल नेतृत्व देखने को मिला जिसका परिणाम हरियाणा राज्य की स्थापना के रूप में कालान्तर में निकला। [2]

स्वामीजी का निधन 11 मई 1913 को हाथरस में हुआ। उनकी स्मृति में ज्वालापुर, हरिद्वार में स्वामी दर्शनान्द प्रबन्धन एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, <ref>About Swami Darshnanand Institute of Management & Technology, [SDIMT Haridwar] खोला गया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती". मूल से 10 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 मार्च 2020.
  2. "स्वामी आत्मानन्द : एक वीतराग सन्यासी -डॉ विवेक आर्य". मूल से 21 मार्च 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 मार्च 2020.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]