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चैतन्य भागवत

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श्री चैतन्य भागवत चैतन्य महाप्रभु के उपदेशों पर लिखा एक ग्रन्थ है। चैतन्य भागवत में यह वर्णन है कि ईश्वरपुरी के निकट दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात श्री चैतन्य महाप्रभु गया से नवद्वीप धाम जाते समय यहां प्रथम बार भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन किये तथा उससे आलिंगनबद्ध हुए। इस कारण से इस स्थान का नाम कालान्तर में 'कन्हैयास्थान' पड़ा। उक्त कन्हाई नाटयशाला में राधाकृष्ण एवं चैतन्य महाप्रभु के पदचिह्न आज भी मौजूद हैं।

नामकरण[संपादित करें]

"चैतन्य भागवत" पुस्तक का मूल नाम "चैतन्यमंगल" था। लेकिन बाद में ज्ञात हुआ कि कवि लोचन दास ने भी इसी नाम से एक चैतन्य जीवनी की रचना की थी। तब वैष्णव समुदाय के प्रतिष्ठित विद्वान बृंदावन में एकत्र हुए और निर्णय लिया कि वृंदावन दास टैगोर की पुस्तक को "चैतन्य भागवतम" कहा जाएगा और लोचन दास की पुस्तक को "चैतन्यमंगल" के रूप में जाना जाएगा।