मौज़माबाद

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मौज़माबाद
Mauzmabad
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मौज़माबाद is located in राजस्थान
मौज़माबाद
मौज़माबाद
राजस्थान में स्थिति
निर्देशांक: 26°40′23″N 75°21′36″E / 26.673°N 75.360°E / 26.673; 75.360निर्देशांक: 26°40′23″N 75°21′36″E / 26.673°N 75.360°E / 26.673; 75.360
देश भारत
प्रान्तराजस्थान
ज़िलाजयपुर ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल8,635
भाषा
 • प्रचलितराजस्थानी, हिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

मौज़माबाद (Mauzmabad) भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है।[1][2]

यह गांव राजा मान सिंह की जन्म स्थली भी कही जाती है

राजा मानसिंह के खजांची नन्नू मल गोधा थे जिन्होंने

मौजमाबाद में एक विशाल जैन जिनालय का पुनः निर्माण कराया

यह जिनालय 600 वर्ष प्राचीन हो सकता है परंतु प्रतिमाओं के प्राप्त अभिलेख में अष्टधातु निर्मित कई सारी प्रतिमाएं ऐसी भी है जो 600 वर्ष से अधिक प्राचीन है

इस जिनालय में आक्रमण कारी मुहम्मद गौरी ने हमला किया जिसके कारण यहां तलघर का निर्माण करा कर तलघर मैं प्रतिमाएं छिपाने का प्रयास किया बाद में औरंगजेब के जजिया कर से प्रभावित होने पर जैन समाज ने 150 वर्ष पूर्व मंदिर के प्रांगण को ढकवा दिया ।

इस जिनालय में वास्तु दोष बताता है के जिनालय को किसी अज्ञात हमले से छिपाने का पूर्ण प्रयास किया गया था ।

सांगानेर जैन मंदिर की तरह ही यहां भी मूलनायक बिम्ब मूलनायक के पीछे भगवान अजीतनाथ काली पद्मासन की प्रतिमा जी है।

बड़े तलघर मैं प्रवेश करते ही वहां देवी काली की बच्चों के साथ एक प्रतिमा है, हालांकि बच्चे अंबिका देवी जो नेमीनाथ भगवान की शासन देवी है के साथ दिखाए जाते है,परंतु यहां ये अंबिका देवी नही मां काली ही है जिनके सिर पर 7 फन के साथ भगवान सुपार्श्वनाथ भगवान है स्वास्तिक चिन्ह न होने से यह प्रतिमा प्रथम दृष्ट्या लोग अंबिका देवी ही या पद्मावती मान लेते है परंतु अच्छे से समझने पर यह प्रतिमा मंदिर पर पड़ने वाली बुरी नजर वाली शक्तियों को दूर करने के लिए ही स्थापित की गई ताकि बुरी शक्तियां जिनालय से दूर रहे।

बड़े तलघर से बाहर आने पर नंदीश्वर द्वीप की शाल मैं दो काली प्रतिमाएं है एक काली प्रतिमा भगवान चंदप्रभू की है दूसरी लोग आजतक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा मानते आए है परंतु यह प्रतिमा मैं सर्प चिन्ह नहीं वरन भक्ति को प्रदर्शित करने के लिए भगवान के चरणों में लिपटा दिखाया है जो भगवान महावीर और चंडकौशिक सर्प की कहानी को बताती है ।

भगवान पार्श्वनाथ की शाल में कई अष्टधातु की प्रतिमा है जिनमें से दो देवी प्रतिमाएं भी है

एक आदिनाथ भगवान को अपने शीश पर लिए चक्रेश्वरी माता की है ,

दूसरी भगवान पार्श्वनाथ को अपने शीश पर विराजमान किए हुए मां पद्मावती की प्रतिमा जी है मां पद्मावती को इस प्रतिमा में मोर(मयूर) पक्षी पर विराजमान दिखाया है मां पद्मावती नाग योनि में है और

मोर और नाग एक दूसरे के सर्वथा पूरक होते है परंतु यह प्रतिमा का सर्जन या निर्देशन भट्टारक देवेंद्र कीर्ति जी (महाराज नहीं)ने करवाया पार्श्वनाथ भगवान के चलीसे बहुत अधिक बादल बरसाए की पंक्तियों पर करवाया ताकि यह बताया जा सके के मां पद्मावती भगवान की भक्ति मैं इतना खो गई के उनको यह ज्ञान भी नहीं रहा के मैं किस पर विराजमान हो गई हूं ।

दूसरे तलघर में जो छोटा तलघर के नाम से जाना जाता है वहां 3 विशाल प्रतिमा जी है जिनमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ,द्वितीय तीर्थंकर अजीतनाथ,तथा तृतीय तीर्थंकर संभवनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है :-

आदिब्रह्म अदीश प्रभू आदिनाथ कहलाते है

अजीत और संभव संग विराजे,त्रिखंडी बतलाते है,

तुम चरणों मैं आकर हमने अतिशय तेरा जान लिया,

मिला उन्हें "आशीष"आदिप्रभु का सबका ही कल्याण किया।

यह भारत का एकमात्र जिनालय है जहां रात्रि अभिषेक करने और रात्रि घंटनाद की इजाजत है आप ब्रह्म महूर्त रात्रि तीन बजे भी आकर यहां घंटनाद कर सकते है आप यहां रात्रि 3 बजे अगर आप जल्दी में हो और समाज की जल्दी आने वाली महिलाओं की इजाजत मिले तो भगवान का अभिषेक भी कर सकते है यही एक मात्र जिनालय है जहां भगवान को घुटने से नीचे विराजमान किया जाता है यहां के लोगो का मानना है के भगवान को घुटने से नीचे रखकर या भगवान के सामने अपना माल्यार्पण करने से से ही हम तीर्थांकर बन सकते है देश की जैन समाज या आगम क्या कहता है ये उससे सरोकार नहीं रखते ये अपने खुद के शास्त्र बनाते है ये अपने पुरखों के शास्त्र का भी सम्मान नही करते इनका मानना है के जो खुद से किया जाए वो ही सम्मानित होता है चाहे वो गलत ही क्यों न हो

यह जिनालय प्राचीन है इसमें कोई सन्देह नहीं पर अभी इसके वास्तु को पूरी तरह से सुधारने की आवश्यकता भी है और जरूरत भी पुरातत्व विभाग को इस जिनालय का संरक्षण करने करने की पहल में आगे आना चाहिए ।

मौजमाबाद में कई ऐतिहासिक धरोहर मौजूद है जिनका दोहन अज्ञानता वश गांव के लोगो द्वारा हुआ है

जैसे 52 चूल्हे की हवेली, आदित्यपंचोली की हवेली ,रानी की छतरी,कई पुराने हिंदू मंदिर यह गांव अभी भी बहुत सारी प्राचीन धरोहर समेटे हुए है पुरातत्व विभाग से अनुरोध भी किया जा चुका है जल्दी ही इनके बचाब के लिए सरकार भी मदद के लिए आगे आयेगी ।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
  2. "Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990