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लौहवंशी

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भारत में लोहार एक प्रमुख व्यावसायिक जाति है। हथौड़ा, छेनी, धौंकनी आदि औजारों का प्रयोग

 'लोहार प्राचीन समय से ही हथियार बनाने का का, खेती औजार युद्ध के हथियार आदि बनाता है। जाति के आधार  सेलोहार पिछड़े वर्ग में आता है और वर्ण के अनुसार अथर्ववेदीय विश्वब्राह्मण, विश्वकर्मा " कहलाते हैं
  • लौहवंशी राजस्थान,बिहार और उत्तर प्रदेश में निवास करने वाली लोहार जाति की एक गोत्र है।
  • हमारे धर्मशास्त्रो और ग्रथों में विश्वकर्मा के पाँच स्वरुपों और अवतारों का वर्णन प्राप्त होता है।

विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचेता धर्मवंशी विश्वकर्मा - महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र अंगिरावंशी विश्वकर्मा - आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र सुधन्वा विश्वकर्म - महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पात्र भृंगुवंशी विश्वकर्मा - उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)|

लोहार वंश इतिहास[संपादित करें]

इस वंश का संस्थापक राजा संग्रामराज (1003-1028 ईस्वी) था । उसने अपनी मंत्री तुंग को भटिण्डा के शाही शासक त्रिलोचनपाल की ओर से महमूद गजनवी से लड़ने के लिये भेजा, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली । कश्मीर वापस आने पर तुंग की हत्या कर दी गयी । संग्रामराज के बाद अनन्त कुछ शक्तिशाली राजा हुआ ।

उसने सामन्तों के विद्रोह को दबाया तथा दर्दों एवं मुसलमानों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया । उसकी धर्मनिष्ठा रानी सूर्यमती ने प्रशासन को सुधारने में उसकी सहायता की । अनन्त का उत्तराधिकारी कलश हुआ । प्रारम्भ में वह लम्पट और दुराचारी था, किन्तु अपने जीवन के अन्तिम दिनों में उसने योग्यतापूर्वक शासन-संचालन किया ।

लोहारवंश के राजाओं में कलश के पुत्र हर्ष का नाम इस दृष्टि से उल्लेखनीय है कि वह स्वयं विद्वान्, कवि एवं कई भाषाओं तथा विद्याओं का ज्ञाता था । कल्हण उसका आश्रित कवि था । अपनी विद्वता के कारण वह दूसरे राज्यों में भी प्रसिद्ध हुआ परन्तु शासक के रूप में वह क्रूर तथा अत्याचारी था ।

कल्हण उनके अत्याचारों का वर्णन करता है । वह सुख-सुविधाओं तथा शान-शौकत पर पानी की तरह धन बहाता था । उसकी फिजूलखर्ची के परिणामस्वरूप राज्य में आर्थिक सकट उत्पन्न हो गया जिसको दूर करने के लिये हर्ष ने प्रजा की धारा- भारी कर लगाये तथा बलपूर्वक उन्हें वसूल करवाया ।

इन सबका फल यह हुआ कि सामन्तों ने लोहारवंश के उच्छल तथा सुस्सल नामक दो भाईयों के नेतृत्व में विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया । चतुर्दिक् अशान्ति और अव्यवस्था फैल गयी जिसको दबाने के प्रयास में हर्ष 1101 ईस्वी में मार डाला गया ।

हर्ष की मृत्यु के बाद कश्मीर का इतिहास अराजकता, अव्यवस्था एवं षड्‌यन्त्रों का इतिहास है । राजतरगिणी से उच्छल, सुस्सल, भिक्षाचर तथा जयसिंह आदि राजाओं के नाम ज्ञात होते है । जयसिंह इस वश का अन्तिम शासक था जिसने 1128 ईस्वी से 1155 ईस्वी तक शासन किया । उसने यवनों को पराजित कियाकल्हण की राजतरंगिणी का विवरण जयसिंह के शासन के साथ ही समाप्त हो जाता है । इसके बाद लगभग दो शताब्दियों तक कश्मीर में हिन्दू शासन चलता रहा ।

श्री विश्वकर्मा वंशावली[संपादित करें]

विश्वकर्मा नाम के ऋषि भी हुए है। विद्वानों को इसका पूरा पता है कि ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त दिया हुआ है और इस सूक्त में 14 ऋचायें है इस सूक्त का देवता विश्वकर्मा है और मंत्र दृष्टा ऋषि विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा सूक्त 14 उल्लेख इसी ग्रन्थ विश्वकर्मा-विजय प्रकाश में दिया है। 14 सूक्त मंत्र और अर्थ भावार्थ सब लिखे दिये है। पाठक इसी पुस्तक में देखे लेंवे। य़इमा विश्वा भुवनानि इत्यादि से सूक्त प्रारम्भ होता है यजुर्वेद 4/3/4/3 विश्वकर्मा ते ऋषि इस प्रमाण से विश्वकर्मा को होना सिद्ध है

लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

इन्हें देखे[संपादित करें]

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