तिलोयपन्नति

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

तिलोयपन्नति (त्रिलोकप्रज्ञप्ति), जैन मुनि यतिवृषभ द्वारा रचित करणानुयोग और ब्रह्माण्डविज्ञान का एक ग्रन्थ है। इसकी भाषा आरम्भिक प्राकृत भाषा (जैन शौरसेनी) है। यह आर्या छन्द में है। माना जाता है कि यह ग्रन्थ बाद के अनेक ग्रन्थों (जैसे 'राजवार्तिक', हरिवंश पुराण, 'त्रिलोकसार', 'जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति ' तथा 'सिद्धान्तसारदीपिका') के लिये स्रोत-ग्रन्थ है।

विषयवस्तु[संपादित करें]

इस ग्रन्थ में कुल 5677 आर्या छन्द हैं जो ९ अध्यायों में विभक्त हैं। इन अध्यायों में वर्णित विषय कुछ सीमा तक उनके नामों से समझे जा सकते हैं।

  1. लोक
  2. नरक लोक
  3. भावनावासी लोक
  4. मनुष्य लोक
  5. तिर्यञ्च लोक (वनस्पतियाँ, पशु, कीट आदि)
  6. व्यन्तर लोक
  7. ज्योतिषी लोक
  8. कल्पवासी लोक
  9. सिद्ध लोक

सन्दर्भ[संपादित करें]