परोपकारिणी सभा

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परोपकारिणी सभा आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित एक सभा (सोसायटी) है। यह स्वामी दयानन्द सरस्वती की उत्तराधिकारिणी सभा है। इसका निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि आर्यसमाज के ग्रन्थों का मुद्रण एवं प्रकाशन निर्बाध गति से चले तथा देश-देशान्तर एवं द्वीप-द्वीपान्तर में धर्म-प्रचार, अनाथ रक्षण, अबला उद्धार आदि के लोकोपकारी कार्य पूरे होते रहें। इसका मुख्यालय अजमेर में है।

वर्तमान समय में यह सभा, गुरुकुल, गौशाला, पुस्तकालय, संग्रहालय, वैदिक यन्त्रालय, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम आदि चलाती है तथा 'परोपकारी' नामक एक पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशित करती है। इसके अलावा यह सभा सद्साहित्य का निःशुल्क वितरण, वेद-गोष्ठियों का आयोजन, वेद कण्ठस्थीकरण प्रतियोगिता का आयोजन, विद्वत् सम्मान, ऋषि मेले का आयोजन, वेद-प्रचार यात्राओं का आयोजन, ध्यान-साधना शिविरों का आयोजन, आर्यवीर एवं आर्यवीरांगना दल शिविर का आयोजन, पाण्डुलिपि संरक्षण आदि कार्य भी करती है।

इतिहास[संपादित करें]

स्वामी दयानन्द ने परोपकारिणी सभा की प्रथम स्थापना मेरठ में की। तदर्थ १६ अगस्त १८८० ई. को एक स्वीकार पत्र लिखा तथा उसी दिन मेरठ के सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में उसे पंजीकृत कराया गया। इस स्वीकार पत्र में लाहौर निवासी लाला मूलराज को प्रधान तथा आर्यसमाज मेरठ के उपप्रधान लाला रामशरणदास को मन्त्री नियुक्त किया गया था। सभासदों की संख्या १८ थी और स्वामी जी ने इस सभा को अपने वस्त्र, धन, पुस्तक एवं यन्त्रालय आदि के स्वत्व प्रदान किये थे। अन्य प्रतिष्ठित आर्य पुरुषों के अतिरिक्त थियोसोफिकल सोसाइटी के संस्थापक-द्वय कर्नल एच. एस. ऑलकाट तथा मैडम एच.सी. ब्लावट्स्की भी इस सभा के सदस्य नियत किये गये।[1]

कालान्तर में जब स्वामी दयानन्द १८८३ ई. के आरम्भ में उदयपुर आये तो उन्होंने एक अन्य स्वीकार पत्र लिखकर परोपकारिणी सभा का न केवल पुनर्गठन ही किया अपितु उसे उदयपुर राज्य की सर्वोच्च प्रशासिका महद्राज सभा के द्वारा फाल्गुन कृष्णा पञ्चमी १८२९ वि. (२७ फरवरी १८८३ ई.) को पञ्जीकृत भी करवाया। 1883 ई. में जब परोपकारीणी सभा का निर्माण किया गया तब अधिकांश व्यक्ति मेवाड़ के ही थे। इस सभा का मंत्री कविराज श्यामलदास को बनाया गया एवं प्रधान मेवाड़ के महाराणा को नियुक्त किया गया।[2]

किन्तु परोपकारिणी सभा का वास्तविक कार्य तो स्वामी दयानन्द के देहावसान के पश्चात् ही प्रारम्भ हुआ।

उद्देश्य[संपादित करें]

स्वीकार पत्र में स्वामीजी ने परोपकारिणी सभा के सम्मुख निम्न लक्ष्य पूर्ति हेतु रखे थे-

(१) वेद और वेदांगादि शास्त्रों के प्रचार अर्थात् उनकी व्याख्या करने कराने, पढऩे पढ़ाने, सुनने सुनाने, छापने छपवाने का कार्य।
(२) वेदोक्त धर्म के उपदेश और शिक्षा अर्थात् उपदेशक मण्डली नियम करके देश-देशान्तर और द्वीप-द्वीपान्तर में भेज कर सत्य के ग्रहण और असत्य को त्याग करना।
(३) आर्यावर्तीय और दीन मनुष्यों के संरक्षण, पोषण और सुशिक्षा का कार्य।

ऋषि उद्यान आश्रम[संपादित करें]

अजमेर में आनासागर सुरम्य तट पर स्थित ऋषि उद्यान आश्रम अत्यन्त रमणीय है। यह आश्रम परोपकारिणी सभा द्वारा संचालित है। इस आश्रम में ही परोकारिणी सभा की अधिकांश गतिविधियाँ संपन्न होती हैं। जिस भूमि पर यह आश्रम है, वह शाहपुरा नरेश सर नाहरसिंह ने परोपकारिणी सभा को प्रदान की थी। कहा जाता है कि महर्षि के अन्त्येष्टि संस्कार के पश्चात् उनकी राख को इस उद्यान में बिखेरा गया था और उनकी अस्थियों को एक स्थान पर गाड़ दिया गया था, उसी स्थान पर ऋषि उद्यान की केन्द्ररूप यज्ञशाला स्थित है।

इस पूरे परिसर के बीचों-बीच सुन्दर बृहद यज्ञशाला है, जिसमें प्रतिदिन प्रातः सायं दोनों समय यज्ञ-सत्संग का आयोजन किया जाता है। हरी घास वाला विस्तृत उद्यान इस आश्रम की शोभा को और अधिक रमणीय बना देता है।

आश्रम के परिसर में ऊँची अट्टालिकाओं से युक्त 7 भवन हैं-

  • (१) महर्षि दयानन्द अनुसन्धान भवन ( आचार्य डॉ. धर्मवीर अनुसन्धान केन्द्र )- इस चार मंजिला भवन में वेद वेदांगों के पठन-पाठन हेतु 'महर्षि दयानन्द आर्ष गुरुकुल' का सञ्चालन किया जाता है।
  • (२) स्वामी ओमानन्द संन्यास आश्रम - इस भवन में भी चार मंजिलें हैं। यहाँ साधु-संन्यासियों एवं वानप्रस्थियों के आवास का प्रबन्ध रहता है।
  • (३) पण्डित लेखराम अतिथिशाला- आगन्तुक अतिथियों, विद्वत् महानुभावों के ठहरने के लिए इस भवन के प्रकोष्ठ उपयोग में लिए जाते हैं।
  • (४) श्री सीताराम पंसारी भवन / योग मन्दिर- श्री सीताराम पंसारी के सहयोग से निर्मित यह भवन भोजनशाला के रूप में है। ऊपर के तल 'योग मन्दिर' के नाम से जाने जाते है। इसमें शिविरों आदि में आवास व्यवस्था एवं कक्षाओं का आयोजन होता है। विशिष्ट अतिथियों हेतु चार वातानुकूलित प्रकोष्ठों के साथ कई अन्य प्रकोष्ठ भी हैं।
  • (५) गौशाला भवन- गौशाला के ऊपर निर्मित 20 प्रकोष्ठ अतिथियों एवं स्थायी आश्रमवासियों के आवास हेतु हैं।
  • (६) छः दीर्घ प्रकोष्ठ (फ्लैट) - इस भवन के प्रकोष्ठ विशिष्ट अतिथियों हेतु आरक्षित रहते हैं।
  • (७) स्वामी दयानन्द सरस्वती भवन- मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही दिखाई देने वाले इस भव्य भवन में महर्षि दयानन्द सरस्वती की वस्तुओं को संग्रहालय के रूप में रखा गया है। ध्यान योग शिविरों के आयोजन के लिए भी इस भवन का प्रयोग किया जाता है।

परोपकारी पत्रिका[संपादित करें]

'परोपकारी पत्रिका' परोपकारिणी सभा का मुखपत्र है। यह पाक्षिक पत्रिका है। इसमें वैदिक सिद्धान्तों पर आर्य विद्वानों के शोधपरक लेखों का प्रकाशन होता है। सम्पादकीय लेख में समाज की सामयिक घटनाओं आर्यसमाज का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है।

परोपकारी पत्रिका का इतिहास - परोपकारिणी सभा के द्वितीय अधिवेशन में सभा की ओर से सभा का मुखपत्र निकलने का निर्णय लिया गया, जिसका नाम 'परोपकारी' रखा गया। पत्र को छः मासिक एवं हिंदी भाषा में रखा गया। इसका प्रथम अंक कार्तिक शुक्ला १ संवत १९४६ विक्रमी (सन 1889 ई०) में प्रकाशित हुआ, जिसका वार्षिक मूल्य १ रुपया निर्धारित हुआ। इसका दूसरा अंक भी प्रकाशित हुआ, परन्तु उसके बाद इसका प्रकाशन रुक गया। १९०६ ई. के अधिवेशन में इसे मासिक रूप से पुनः प्रकाशित करने का निश्चय हुआ। प्रथम वर्ष में संपादन कार्य सभा के उपमंत्री श्री भक्तराम ने किया। द्वितीय वर्ष के प्रथम अंक से परोपकारी का संपादन कार्य हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार पण्डित पद्मसिंह शर्मा ने स्वीकार किया। शर्मा जी के संपादन काल में पत्र की अभूतपूर्व उन्नति हुई। शर्मा जी के संपादन में इस पत्र के आठ अंक ही निकल सके। संपादन कार्य का भार पुनः श्री भक्तराम के पास आया। नवम्बर १९०९ के अधिवेशन में पत्र का प्रकाशन बंद कर दिया गया। लगभग अर्धशताब्दी के बाद नवम्बर १९५९ ई. (कार्तिक २०१६ वि.) में यह पत्र पुनः प्रारम्भ किया गया। तब से अब तक यह पत्र निरन्तर समाज व सिद्धान्तों की सेवा कर रहा है।

महर्षि दयानन्द बलिदान शताब्दी समारोह १९८३ में डॉ. धर्मवीर परोपकारिणी सभा से जुड़े। उन्होंने परोपकारी पत्रिका के सम्पादन का कार्य संभाला और इसे आर्यजगत की सर्वोच्च पत्रिका बना दिया। उनके सम्पादन काल में परोपकारी ने पाँच सौ से पन्द्रह हजार सदस्यों की यात्रा की। अक्टूबर २०१६ में इहलोक की लीला समाप्त कर स्वयं को अमर कर गए। उनकी मृत्यु के पश्चात् सभा के संयुक्त मंत्री डॉ. दिनेशचंद्र शर्मा को सम्पादक नियुक्त किया गया, जो कि वर्तमान में भी पत्रिका के सम्पादक का कार्यभार संभाल रहे हैं।[3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "परोपकारिणी सभा". मूल से 24 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2020.
  2. Dixit, Navin Kumar. मेवाड़ स्वतन्त्रता आन्दोलन पर राष्ट्रीय विचारधारा का प्रभाव (1857 ई. से 1948 ई. तक). AEGAEUM JOURNAL. पृ॰ 5. 1883 ई. में परोपकारीणी सभा का निर्माण किया गया। अधिकांश व्यक्ति मेवाड़ के ही थे। इस सभा का मंत्री कविराज श्यामलदास को बनाया गया एवं प्रधान महाराणा को नियुक्त किया गया। |title= में 60 स्थान पर line feed character (मदद)
  3. परोपकारी पत्रिका

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]