प्रभा खेतान

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डॉ॰ प्रभा खेतान (1 नवंबर 1942 - 20 सितंबर 2008) प्रभा खेतान फाउन्डेशन की संस्थापक अध्यक्षा, नारी विषयक कार्यों में सक्रिय रूप से भागीदार, फिगरेट नामक महिला स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापक, 1966 से 2008 तक चमड़े तथा सिले-सिलाए वस्त्रों की निर्यातक, अपनी कंपनी 'न्यू होराईजन लिमिटेड' की प्रबंध निदेशिका, हिन्दी भाषा की लब्ध प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कवियत्री तथा नारीवादी चिंतक तथा समाज सेविका थीं। उन्हें कलकत्ता चैंबर ऑफ कॉमर्स की एकमात्र महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त था। वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की सदस्या थीं।

जीवनी[संपादित करें]

कोलकाता विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने वाली प्रभा ने "ज्यां पॉल सार्त्र के अस्तित्त्ववाद" पर पीएचडी की थी। उन्होंने 12 वर्ष की उम्र से ही अपनी साहित्य यात्रा की शुरुआत कर दी थी और उनकी पहली रचना (कविता) सुप्रभात में छपी थी, तब वे सातवीं कक्षा की छात्रा थी। १९८०-८१ से वे पूर्ण कालीन साहित्यिक सेवा में लग गईं। उनके छ: कविता संग्रह- अपरिचित उजाले (१९८१), सीढ़ीयां चढ़ती रही मैं (१९८२), एक और आकाश की खोज में (१९८५), कृष्णधर्मा मैं (१९८६), हुस्नबानो और अन्य कविताएं (१९८७), अहिल्या (१९८८) और आठ उपन्यास- आओ पेपे घर चलें, तालाबंदी (१९९१), अग्निसंभवा (१९९२), एडस, छिन्नमस्ता (१९९३), अपने -अपने चहरे (१९९४), पीली आंधी (१९९६) और स्त्री पक्ष (१९९९) तथा दो लघु उपन्यास शब्दों का मसीहा सा‌र्त्र, बाजार के बीच :बाजार के खिलाफ सभी साहित्यिक क्षेत्र में प्रशंसित रहे। फ्रांसीसी रचनाकार सिमोन द बोउवा की पुस्तक ‘दि सेकेंड सेक्स’ के अनुवाद ‘स्त्री उपेक्षिता’ ने उन्हें काफी चर्चित किया। इसके अतिरिक्त उनकी कई पुस्तकें जैसे बाजार बीच बाजार के खिलाफ और उपनिवेश में स्त्री जैसी रचनाओं ने उनकी नारीवादी छवि को स्थापित किया। अपने जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर करने वाली आत्मकथा ‘अन्या से अनन्या’ लिखकर सौम्य और शालीन प्रभा खेतान ने साहित्य जगत को चौंका दिया।

डॉ॰ प्रभा खेतान के साहित्य में स्त्री यंत्रणा को आसानी से देखा जा सकता है। बंगाली स्त्रियों के बहाने इन्होंने स्त्री जीवन में काफी बारीकी से झांकने का बखूबी प्रयास किया। आपने कई निबन्ध भी लिखे। डॉ॰ प्रभा खेतान को जहाँ स्त्रीवादी चिन्तक होने का गौरव प्राप्त हुआ वहीं वे स्त्री चेतना के कार्यों में सक्रिय रूप से भी हिस्सा लेती रहीं। उन्हें 'प्रतिभाशाली महिला पुरस्कार' और टॉप पर्सनैलिटी अवार्ड' भी प्रदान किया गया। साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिये केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का 'महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार' राष्ट्रपति ने उन्हें अपने हाथों से प्रदान किया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

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