वार्ता:पृथ्वी का हिन्दू वर्णन

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पृथ्वी का वर्णन[संपादित करें]

जैसा हीन्दु वर्णन है वैसा ही अंग्रेजी वर्णन जरुर है। हीन्दु वर्णन गलत है जीसे कई अंग्रेजोने ४०० साल में सुधार दीया है।

श्लोक में किंचित् सुधार[संपादित करें]

मैंने इस श्लोक में कुछ वर्तनीगत अशुद्धि पायी अतः सुधार दिया है। (क्षमा करें, गलती से लॉगिन करना भूल गया था)। मेरा यह विनम्र प्रयास है कि विकिपीडिया के उद्धृत श्लोकों में अशुद्धि न रहे, यद्यपि मैं पूर्ण कारणदायिता(रीसनेबिलिटी) के साथ सुधार करूँगा परन्तु फिर भी आपको कोई सुधार अयुक्त लगे तो मेरे वार्तापृष्ठ पर बता सकते हैं। -Hemant wikikosh ०६:५६, २ जून २०१० (UTC)

खोज करने पर पता चला कि यही श्लोक इसी रूप में महाभारत लेख में भी उद्धृत है परन्तु वह लेख सुरक्षित है। कृपया सक्षम सदस्य वहाँ इस श्लोक में यह सुधार कर देवें-

सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥ यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।

साथ ही यह कहना भी नहीं भूल सकता कि मयूर जी ने महाभारत संबंधी लेखों में अत्यधिक प्रशंसनीय कार्य किया है, उन्हें बधाई। -Hemant wikikosh ०७:०७, २ जून २०१० (UTC)