वार्ता:सत्यमेव जयते

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लेखन संबंधी नीतियाँ

सत्यमेव जयति न अनृतम्[संपादित करें]

सत्य शब्द यहाँ परमात्मा के लिए आया है. वह सब पर विजयी है उसकी सदा जय है. यह सत्य शब्द सांसारिक अथवा भासित सत्य के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ है।— इस अहस्ताक्षरित संदेश के लेखक हैं -Prof. Basant (वार्तायोगदान) 09:26, 25 जून 2012 (UTC)उत्तर दें

बसन्त जी, कृपया इसे और विस्तार से बताएँ। -- अनुनाद सिंहवार्ता 09:30, 25 जून 2012 (UTC)उत्तर दें

वेदान्त एवम दर्शन ग्रंथों में जगह जगह सत् असत् का प्रयोग हुआ है. सत् शब्द उसके लिए आया है जो सृष्टि का मूल तत्त्व है, सदा है, जो परिवर्तित नहीं होता, जो निश्चित है. इस सत् तत्त्व को ब्रह्म अथवा परमात्मा कहा गया है. असत शब्द का प्रयोग माया के लिए हुआ है. असत् उसे कहा है जो कल नहीं था, आज है, कल नहीं रहेगा अर्थात जो विनाशशील है, परिवर्तन शील है. यहाँ असत् का अर्थ झूठ नहीं है. नीति ग्रंथो में सत् असत् सांसारिक सच झूठ के लिए प्रयुक्त हुआ है. मुन्डकोपनिषद के मुंडक ३ के पांचवें श्लोक का अवलोकन करें.
सत्यमेव जयति नानृत
सत्येन पन्था विततो देवयानः
येनाक्रममन्त्यृषयो ह्याप्तकामा
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानाम् .
सत्य (परमात्मा) की सदा जय हो, वही सदा विजयी होता है. असत् (माया) तात्कालिक है उसकी उपस्थिति भ्रम है. वह भासित सत्य है वास्तव में वह असत है अतः वह विजयी नहीं हो सकता. ईश्वरीय मार्ग सदा सत् से परिपूर्ण है. जिस मार्ग से पूर्ण काम ऋषि लोग गमन करते हैं वह सत्यस्वरूप परमात्मा का धाम है.— इस अहस्ताक्षरित संदेश के लेखक हैं -Prof. Basant (वार्तायोगदान) 17:00, 25 जून 2012 (UTC)उत्तर दें

आपका उत्तर संक्षिप्त और अत्यन्त संतोषजनक है। -- अनुनाद सिंहवार्ता 13:39, 26 जून 2012 (UTC)उत्तर दें

कृपया इस Wiki को स्वयम-सम्पूर्णता प्रदान करें।[संपादित करें]

कृपया इस विकी को स्वयम-सम्पूर्णता प्रदान करें।  
मुन्डकोपनिषद के मुंडक ३ के पांचवें स्तोत्र का अवलोकन करें।
सत्यमेव जयते नानृतम
सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो
यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम्॥
इस स्तोत्र का पूर्ण रूप से प्रत्येक संस्कृत शब्द शब्दार्थ के साथ विस्तार किया जाये। ताकि हरेक पाठक को इस स्तोत्र से प्रेरणा मिले।

Bkpsusmitaa (वार्ता) 12:04, 1 जनवरी 2019 (UTC)उत्तर दें