सदस्य वार्ता:Nitinkrishna

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स्वागत!  नमस्कार Nitinkrishna जी! आपका हिन्दी विकिपीडिया में स्वागत है।

-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 07:12, 15 मई 2024 (UTC)उत्तर दें

गौ घाट/गाय घाट पृष्ठ का हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकन[संपादित करें]

नमस्कार, गौ घाट/गाय घाट को विकिपीडिया पर पृष्ठ हटाने की नीति के अंतर्गत हटाने हेतु चर्चा के लिये नामांकित किया गया है। इस बारे में चर्चा विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/गौ घाट/गाय घाट पर हो रही है। इस चर्चा में भाग लेने के लिये आपका स्वागत है।

नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है:

उल्लेखनीयता स्पष्ट नहीं है।

कृपया इस नामांकन का उत्तर चर्चा पृष्ठ पर ही दें।

चर्चा के दौरान आप पृष्ठ में सुधार कर सकते हैं ताकि वह विकिपीडिया की नीतियों पर खरा उतरे। परंतु जब तक चर्चा जारी है, कृपया पृष्ठ से नामांकन साँचा ना हटाएँ। चन्द्र वर्धन (वार्ता) 05:31, 19 मई 2024 (UTC)उत्तर दें

नामांकनकर्ता ने नामांकन करते समय निम्न कारण प्रदान किया है: की उल्लेखनीयता स्पष्ट नहीं है।
अत: मैं कुछ संदर्भ दे रहा हूं जिसे आप प्रमाणिकता की जांच कर सकते हैं
काशी में माधव गोपियो के साथ पूजे जाते हैं, इस तीर्थ का नाम गोपी गोविंद है, इसी स्थान पर गायो को भगवान शंकर ने लिंग स्वरूप में और मां गौरी ने मूर्ति स्वरूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ साक्षात दर्शन दिए, गौओ के इस प्रकार शंकर और मा गौरी के प्रत्यक्ष दर्शन से गोप्रेक्ष नाम हुआ। इसी तीर्थ पर गोप्रेक्षेश्वर महादेव का सतयुग कालीन मंदिर है जहां एक ही लिंग में मां गौरी और आदि शिव विराजमान हैं।
स्कंद पुराण में लिखा है -
महादेवस्य पूर्वेण गोप्रेक्षं लिंगमुत्तमम् ।। ९ ।।
तद्दर्शनाद्भवेत्सम्यग्गोदानजनितं फलम् ।।
गोलोकात्प्रेषिता गावः पूर्वं यच्छंभुना स्वयम् ।। १० ।।
वाराणसीं समायाता गोप्रेक्षं तत्ततः स्मृतम् ।।
गोप्रेक्षाद्दक्षिणेभागे दधीचीश्वरसंज्ञितम् ||११||
सरल भावनाुवाद - महादेव जी का पूर्व दिशा में एक बहुत ही अध्भुत लिंग है जिसे गोप्रेक्ष नाम से जाना जाता है, यह अर्धनारीश्वर का ऐसा स्वरूप जिसमें शिव स्वयं लिंग रूप में और मां गौरी स्वयं मूर्ति रूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ विराजते हैं भगवान शंकर ने गायो को स्वयं गोलोक से काशी जाने का आदेश दिया, जब वे भोलेनाथ की आज्ञा से काशी पहुंचे तो भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर मां गौरी सहित दर्शन दिए, गायो को दर्शन देने के कारण गोप्रेक्ष नाम हुआ, और यहां दर्शन करने से अनंत गौ दान का फल प्राप्त होता है और दम्पत्य क्लेश नाश होता है
वर्तमान स्थिति
पहले बद्रीनारायण घाट से वर्तमान बूंदीपरकोटा घाट तक गोप्रेक्षेश्वर तीर्थ था किंतु, कालान्तर में हुए निर्माणो से इसका चेत्रफल सिकुडता गया, नए पक्केघाट बन जाने से गोप्रेक्ष तीर्थ का एक हिस्सा लालघाट, और हनुमानगढ़ी घाट, और शेष हिसा गोप्रेक्ष तीर्थ से अपभ्रंश होकर गौ घाट, और आज वर्तमान में गाय घाट के नाम से जाना जाता है। Nitinkrishna (वार्ता) 06:34, 20 मई 2024 (UTC)उत्तर दें